आपदा: परिभाषा, प्रकार, उदाहरण, प्रभाव | प्राकृतिक और मानवकृत आपदा के कारण

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आपदा एक प्रकार की समस्या होती है और मानव या प्राकृतिक कारणों से उत्पन्न होती है। आपदा के प्रभाव से संपूर्ण समाज, पशु तथा अन्य कई तरह के नुकसान का सामना करना पड़ता है। आपदा का अर्थ संकट या विपत्ति से होता है। आपदा को अंग्रेजी में Disaster कहा जाता है। यह शब्द फ्रेंच भाषा के Desaster शब्द से आया है जिसका फ्रेंच में अर्थ बुरा तथा अनिष्टकारी तारा होता है। अतः इस आर्टिकल में हम आपदा की परिभाषा, आपदा के प्रकार, प्राकृतिक तथा मानवकृत आपदा को जानेंगे। इसके साथ ही आपदा आने के कारण को भी जानेंगे।

आपदा की परिभाषा (Disaster Definition)

आपदा परेशानी का वह रूप है जो प्राकृतिक अथवा मानवीय कारणों से उत्पन्न होती है और जिसके परिणाम से सामाजिक ढांचा, जनसमुदाय, पशुधन, संपत्ति को क्षति होती है, उसे आपदा कहते है।

संसार के सभी देश किसी न किसी आपदा से ग्रसित है। भारत भी उन्ही देशों में से एक है। भारत में भी कई प्रकार की आपदा उत्पन्न होती है। भारत में कई प्रकार की जलवायु तथा भूमि पाई जाती है। भारत में प्राचीनतम शैलो से निर्मित पठार तथा हिमालय की नवीन वलित श्रेणियां स्थित है। जिनके उत्क्षेप जारी होने के कारण अस्थिरता की स्थिति बनी रहती है। जो आगे चलकर भूकम्प की घटनाओं के रूप में प्रकट होती है।

आपदा के प्रकार (Disaster Types)

आपदा मुख्य तौर पर दो प्रकार की होती है-

  1. प्राकृतिक आपदा (Natural Disaster)
  2. मानवकृत आपदा (Human Made Disaster)

प्राकृतिक आपदा (Natural Disaster)

वे आपदा जिनके उत्पन्न होने कारण स्वयं प्रकृति होती है, तथा जिनमे मानव के क्रियाकलापों का कोई संबंध नहीं होता, प्राकृतिक आपदा (Natural Disaster) कहलाती है।

उदाहरण: भूकंप, भूस्खलन, बाढ़, सूखा, बादल का फटना, चक्रवाती तूफान, समुंद्री लहरें आदि।

प्राकृतिक आपदा के उदाहरण और प्रकार

प्राकृतिक आपदा कई तरह की होती है। अलग-अलग आपदाओं में विभिन्न नुकसान देखने को मिलते है। भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा में धरती के फटने का खतरा रहता है, भूस्खलन जैसी आपदा में पहाड़ों ढालों पर उनके कुछ हिस्सों के गिरने के कारण होती है। बाढ़ जैसी आपदा अत्यधिक वर्षा और नदी में अत्यधिक जल के कारण होती है।

भूकम्प (Earthquake)
भूकम्प (Earthquake)

भूकम्प (Earthquake)

पृथ्वी की सतह के कुछ किलोमीटर तक गहराई में स्थित चट्टानों में उपस्थित दरारों, भ्रंशों, कमजोर सतहों (प्लेटो) के परस्पर टकराने से हलचल, घर्षण आदि से कुछ कम्पन उत्पन्न होते है जो चारो तरफ प्रसारित होकर पृथ्वी की सतह पर स्थित वस्तुओ, घरों आदि को हिला डाला कर असंतुलित कर देते हैं, इस घटना को भूकम्प (Earthquake) कहते है। इस प्रक्रिया के कारण ही भूकंप उत्पन्न होते है।

  • भूकंप बहुत ही विनाशकारी आपदाओं में से एक है।
  • भूकम्प की तीव्रता का आंकलन रिक्टर स्केल द्वारा किया जाता है।
भूस्खलन  (Landslide)
भूस्खलन (Landslide)

भूस्खलन (Landslide)

जब पर्वतीय ढालों का बहुत बड़ा भाग जलतत्व की अधिकता के कारण उसका आधार अपनी गुरूत्वीय स्थिति से असंतुलित होकर अचानक तेजी से पूरा अथवा छोटे-छोटे भागो में नीचे गिरने लगता है तो इस प्रक्रिया को भूस्खलन (Landslide) कहा जाता है। इस प्रक्रिया के कारण ही भूस्खलन की उत्पत्ति होती है।

भूस्खलन की घटना ज्यादातर पर्वतीय क्षेत्रों में देखने को मिलती है। भूस्खलन ज्यादातर बहुत तीव्र गति से तथा अचानक होते है। भूकम्प भी भूस्खलन लाने का एक मुख्य कारण होता है। कभी-कभी खुदाई या नदी के द्वारा पर्वत के ढाल काट देने से पर्वतीय ढाल अधिक गहरा तथा असंतुलित हो जाता है और भूस्खलन का खतरा उत्पन्न हो जाता है। पर्वतीय ढालों के तीव्र होने की घटना धीरे-धीरे सम्पन्न होती है लेकिन भूस्खलन अत्यधिक तीव्र गति से होता है।

सुनामी (Tsunami)
सुनामी (Tsunami) आपदा क्षेत्र

सुनामी (Tsunami)

भूकंप या ज्वालामुखियों के फटने के कारण समुद्र की तलहटी में ऊर्जा उत्पन्न होने से बड़ी-बड़ी लहरें उत्पन्न होती हैं। जब ये लहरे अत्यधिक तीव्र गति तथा तरंगदैर्ध से तट के दूर जाकर क्षेत्रों का विनाश करती है तो इस घटना को सुनामी (Tsunami) कहते हैं। इन कारणों से ही सुनामी उत्पन्न होते है।

सुनामी जापानी भाषा का शब्द है जो दो शब्दो सू और नामी से मिलकर बना है। सू का अर्थ है बंदरगाह तथा नामी का अर्थ लहर होता है। सुनामी की लहरों की ऊंचाई 15 मीटर से अधिक भी हो सकती है।

बाढ़ (Flood)

किसी क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा होने से या नदियों का जल फैल जाने से उस क्षेत्र के जलमग्न हो जाने की घटना को बाढ़ (flood) कहते है। यह प्रक्रिया ही बाढ़ का कारण बनती है।

बाढ़ की घटना वर्षा काल में अधिक होती है। कुछ क्षेत्रों में वर्षा के समय नदियों का स्तर खतरे के निशान के ऊपर बहने लगता है और तटबंधों को तोड़कर निकटवर्ती क्षेत्रों में फैल जाता है। ऐसी स्थिति मे नदियों के पास के गांव तथा शहरो की स्थिति भयावह हो जाती है। बाढ़ से मानव जीवन को सम्पत्ति तथा आर्थिक तौर पर बहुत हानि होती है।
बाढ़ के कारण ही दामोदर नदी को बंगाल का शोक तथा कोसी नदी को बिहार का शोक कहते है। ब्रह्मपुत्र नदी को असम का शोक कहते है।

सूखा (Drought)

जब मनुष्य को जल की प्राप्ति उसकी आवश्यकता से काफी कम होती है तो इस स्थिति को सूखा कहते है। भारत मानसूनी जलवायु वाला क्षेत्र है इसमें बाढ़ तथा सूखा दोनो की समस्या बनी रहती है।

चक्रवात (Cyclone)
चक्रवात (Cyclone)

चक्रवात (समुद्री तूफान)

अत्यधिक तेज गति से चलने वाली वह पवन जिनसे जन जीवन, समाज को हानि की पहुंचती है, चक्रवात (Cyclone) कहलाती है। इन पवनो की गति 100 किलोमीटर प्रति घंटा से भी अधिक हो सकती है। यह पवन ही चक्रवात का कारण बनती है।

विभिन्न स्थानों पर चक्रवात को अलग-अलग नामो से जाना जाता है। भारत में इन पवनो को चक्रवात, ऑस्ट्रेलिया में विली विलीज, अमेरिका में हरीकेन तथा चीन में टाइफून नामो से जाना जाता है।

मानवकृत आपदा (Human made Disaster)

वे आपदा जो मनुष्य द्वारा किए गए कार्यों की गलती तथा दुष्कर्मों का परिणाम होती है, उन्हे मानवकृत आपदा कहते है।

उदाहरण- आग, आतंकवाद, रासायनिक एवं औद्योगिक घटनाएं, विस्फोट, ग्रीन हाउस प्रभाव, ओजोन परत का ह्रास, रेडियोधर्मी प्रदूषण, भू-मण्डलीय तापन आदि।

मानवकृत आपदा के उदाहरण और प्रकार

मानवकृत आपदाएं मनुष्य की तकनीकी विफलता, लापरवाही, जानबूझकर किए गए काम का परिणाम होती है। भोपाल गैस त्रासदी, चेरनोबिल परमाणु दुर्घटना, फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना, हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराना, पुलों और सुरंगों का ढहना जैसी घटनाएं मानवकृत आपदा के उदाहरण है। मानवकृत आपदा के उदाहरण और प्रकार निम्न है-

विस्फोट (Explosion)

आधुनिक युग में नाभिकीय ऊर्जा और परमाणविक संयंत्रो क्षेत्र का बहुत अधिक प्रयोग तथा विकास हो रहा है। नाभिकीय ऊर्जा का प्रयोग अधिक औद्योगिक तथा तकनीकी विकास में हुआ है वहीं नाभिकीय संयंत्र से निकला अपशिष्ट सर्वाधिक खतरनाक जहरीले तथा जीवो द्वारा विकसित न होने वाला होता है। नाभिकीय विकिरण तथा नाभिकीय युद्ध मानव जाति के लिए सर्वनाश का कारण बन सकते है।

उदाहरण- द्वितीय विश्व युद्ध में 6 अगस्त 1945 तथा 9 अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा तथा नागासाकी में परमाणु बम विस्फोट का परिणाम आज भी मानव जाति के लिए बहुत दर्दनाक घटना की याद दिलाता है।

परमाणु विस्फोटों में लाखों लोगों की मृत्यु की अतिरिक्त अनेक लोग अपंग हो गए और बहुत से लोग उनकी संतति में भी उत्पन्न हुए। परमाण्विक युद्ध से वायुमंडल में गैस तथा धूल की मोटी परत बन जाती है। जिससे सूर्य की ऊर्जा पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाती सूर्य विक्रम में अवरोध से संपूर्ण पृथ्वी अंधकार में हो जाती है तथा तापमान में भारी गिरावट होती है। जिससे संपूर्ण पृथ्वी पर बर्फ जम जाती है। यह स्थिति अधिक समय तक बनी रह सकती है इसे ही नाभिक शरद कल कहते हैं।

Global warming
Global warming

भू-मण्डलीय तापन (वैश्विक तापन) Global warming

औद्योगिक मानव जनित कारणों से वायुमंडल एवं पृथ्वी के जीवमंडल के तापमान में वृद्धि हो रही है। इसी को भू-मण्डलीय तापन या ग्लोबल वार्मिग (Global warming) कहते है।

पर्यावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, मेथेन, क्लोरोफ्लोरोकार्बन, जैसी गैसों की मात्रा में वृद्धि हो रही है इस वृद्धि के कारण ही भूमंडलीय ताप में बढ़ोतरी हो रही है।

ग्रीन हाउस प्रभाव (Greenhouse Effect)

पृथ्वी के वातावरण में उपस्थित कुछ गैसे पृथ्वी के चारों ओर एक आवरण तैयार करते हैं जो सूर्य से आने वाले किरणों को आने देता है लेकिन पृथ्वी से होने वाले ताप विकिरण को पार नहीं करने देता है, इन गैसों का प्रभाव ग्रीनहाउस प्रभाव (Greenhouse Effect) कहलाता है।

भारत विश्व के उन 10 देश में शामिल है जो ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं इन गैसों का उत्सर्जन प्राकृतिक और मानवीय दोनों कर्म से होता है खनिज ईंधन का अधिक प्रयोग वन की कटाई खेती बाड़ी के बढ़ते प्रतिमान कुछ इसका प्रमुख कारण है

  • ऐसा अनुमान है कि वर्ष 1807 से पृथ्वी का तापमान 4 डिग्री सेंटीग्रेड बड़ा है और अनुमान है कि अगले 25 सालों में यह बढ़ोतरी 5 डिग्री सेंटीग्रेड तक हो सकती है। अधिक जानकारी के लिए Click Here

ओजोन परत का कम होना

ओजोन परत को पृथ्वी का छाता या रक्षा कवच कहते हैं। ओजोन परत सूर्य विकिरण की पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करती है। पराबैंगनी किरणें जीवन के लिए अनेक तरह से हानिकारक है। पराबैंगनी किरणों से त्वचा का कैंसर, मोतियाबिंद जैसे गंभीर समस्या का सामना करना पद सकता है। इन किरणों से प्रतिरोधक क्षमता में कमी होती है।

ओजोन परत की कमी के कारण पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर आती है जो जीव संरचना में जीन्स एवं न्यूक्लिक अम्ल को परिवर्तित कर सकती हैं। ओजोन परत के ह्रास से पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होगी जिससे समुद्र का जल स्तर बढ़ सकता है।

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अतः इस प्रकार हम प्राकृतिक तथा मानवकृत आपदाओं को समझ सकते है। दोनों प्रकार की आपदाए मानव समाज तथा जीवन को अत्यधिक हानि पहुंचाती है। प्राकृतिक आपदाओं की रोकथाम तो मानव के वश में नहीं है परन्तु उसे मानवकृत आपदा को पैदा करने वाले कारणों पर रोक लगानी चाहिए। हमारे जानकारी से भरपूर अन्य आर्टिकल भी पढ़े तथा इस टॉपिक से कोई सवाल हो तो comment Box मे लिखे।

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