रेगिस्तान में मरीचिका का बनना, हीरे का चमकना, जल में रखी परखनली का चमकना, ठंडे देशों में दूर की वस्तुएं हवा में दिखाई देना, काँच में पड़ी दरारों का चमकना यह सभी पूर्ण आंतरिक परावर्तन के उदाहरण है।
पूर्ण आंतरिक परावर्तन प्रकाश के अपवर्तन की बहुत महत्वपूर्ण घटना है। यदि आपने प्रकाश का अपवर्तन पढ़ा है तो पूर्ण आंतरिक परावर्तन जरूर पढ़े। स्कूलों में प्रकाश के परावर्तन के बाद प्रकाश का अपवर्तन पाठ पढ़ाया जाता है। प्रकाश के परावर्तन के अन्तर्गत दर्पण किसे कहते है, दर्पण के प्रकार, प्रकाश का परावर्तन, परावर्तन के नियम इत्यादि टॉपिक आते है। पूर्ण आन्तरिक परावर्तन से प्रतियोगी परीक्षाओं (competitive Exam) में कई objective प्रश्न पूछे जाते है।
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन की परिभाषा
जब प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जा रही हो और विरल माध्यम में बने अपवर्तन कोण का मान 90° से अधिक होता है तो प्रकाश किरण पुनः सघन माध्यम में ही लौट आती है प्रकाश की इस घटना को प्रकाश का पूर्ण आन्तरिक परावर्तन कहते है।
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन की शर्ते
- प्रकाश सदैव सघन माध्यम से विरल माध्यम की ओर जाना चाहिए।
- प्रकाश किरण के सघन से विरल माध्यम में जाने पर अपवर्तन कोण का मान 90° से अधिक होना चाहिए।
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के उदाहरण-
रेगिस्तान में मरीचिका का बनना (Mirage In Desert)
रेगिस्तान में चलने वाले यात्रियों को कभी-कभी ऐसा लगता है कि आगे कुछ दूरी पर पानी भरा हुआ हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि दूर खड़े रहने पर व्यक्ति को पेड़ दिखाई देता है और इसके साथ-साथ पेड़ का प्रतिबिंब भी दिखाई देता है। इस कारण व्यक्ति को ऐसा भ्रम होता है कि दूर स्थित स्थान पर पानी भरा हुआ है।
![रेगिस्तान में मरीचिका](https://studyvigyan.com/wp-content/uploads/2023/09/20230829_152241_0000.jpg)
जब किसी स्थान पर पानी भरा होता है तो आस पास की वस्तुओ का प्रतिबिंब भी पानी में दिखाई पड़ता है। और ज्ञात हो जाता है की उस जगह पानी भरा है।
मरीचिका किसे कहते है? (what is Mirage)
अत्यन्त गर्म स्थान अथवा रेगिस्तान में व्यक्ति को दूर स्थित वस्तु, पेड़ आदि का उल्टा प्रतिबिम्ब दिखाई देता है जिसके कारण व्यक्ति को ऐसा आभास होता है कि उस निश्चित स्थान पर पानी भरा हुआ है, पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के कारण होने वाले इस दृष्टि भ्रम को ही मरीचिका कहते है।
रेगिस्तान में भी ऐसा ही भ्रम होता है कि दूर स्थित जगह पर पानी का तालाब है जिसमे वस्तु का उल्टा प्रतिबिंब दिखाई दे रहा है। लेकिन सच में वहा पर कोई तालाब नही होता है।
कारण- सूर्य की गर्मी से रेगिस्तान की रेत गर्म हो जाती है। रेत के आसपास की वायु द्वारा रेत को छूने पर आसपास की वायु गर्म हो जाती है। इन गर्म हुई वायु की ऊपरी वायु की परतें इनसे अपेक्षाकृत ठंडी होती है। अतः नीचे अधिक गर्म वायु तथा ऊपर की ओर बढ़ने पर वायु का तापमान कम होने लगता है।
वायु की निचली गर्म परते अपेक्षाकृत अधिक विरल होती है। जब पेड़ से पृथ्वी की ओर प्रकाश किरण चलती है तो वह लगातार सघन माध्यम से विरल माध्यम की ओर आगे बढ़ती है। हम जानते हैं कि जब कोई किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है तो वह अभिलंब से दूर हटती है।
इसलिए वायु की हर परत पर प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल की ओर चलती है और अपवर्तित किरण अभिलंब से दूर हटती जाती है। और एक समय ऐसा आता है कि आपतन कोण का मान क्रान्तिक कोण से बड़ा जाता है। अतः इस परत पर किरण ऊपर की ओर आगे बढ़ने लगती है।
![रेगिस्तान में मरीचिका](https://studyvigyan.com/wp-content/uploads/2023/09/20230901_193155_0000.jpg)
क्योंकि अब किरण ऊपर की ओर चल रही है तो किरण विरल माध्यम से सघन की ओर चलती है। जिसके कारण प्रकाश किरण अभिलंब की ओर झुकती जाती है। जब यह किरण किसी व्यक्ति की आंखो में पड़ती है तो उसे ये किरण नीचे पृथ्वी (जमीन) से आती हुई प्रतीत होती है, और व्यक्ति को पेड़ का उल्टा प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है। जिसके कारण व्यक्ति को ऐसा आभास होता है की उस स्थल पर तालाब है जिसमे पेड़ का प्रतिबिंब दिखाई पड़ रहा है।
अतः यही कारण है कि रेगिस्तान में मरीचिका दिखाई देते है।
हीरे का चमकना
हीरे का क्रान्तिक कोण 24⁰ होता है, जो कि प्रकाश को हीरे के अंदर से वायु की ओर जाने के लिए बहुत कम होता है। जब हीरे के अंदर किसी हिस्से से बाहर का प्रकाश प्रवेश करता है तो यह प्रकाश हीरे के अंदर विभिन्न तलो से बार-बार परावर्तित होता रहता है। हीरे के अंदर प्रकाश का पूर्ण आन्तरिक परावर्तन होता है।
![हीरे का चमकना (पूर्ण आन्तरिक परावर्तन)](https://studyvigyan.com/wp-content/uploads/2023/09/20230901_195018_0000.jpg)
जब हीरे के किसी तल से आपतन कोण का मान 24⁰ से कम हो जाता है तो प्रकाश बाहर निकलता है। अतः हीरे में कई जगहों से प्रवेश किया हुआ प्रकाश केवल कुछ जगहों से ही बाहर निकल पाता है।
हीरे में अधिक देर प्रकाश रहता है जिसके कारण हीरा कुछ ही दिशाओं से बाहर निकलता है। इन दिशाओं से देखने पर हीरा अत्यन्त चमकदार दिखाई पड़ता है।
जल में रखी परखनली का चमकना
जब एक खाली परखनली को जल से भरे बीकर में तिरछा करके रखा जाता है। तो परखनली की एक स्थिति ऐसी आती है जिसमे परखनली का तल चांदी की तरह चमकता दिखाई देता है। इसका कारण पर है कि नली को टेढ़ा करने पर नली के ऊपर गिरने वाले प्रकाश का आपतन कोण बढ़ता जाता है।
जब यह कोण कांच वायु के क्रान्तिक कोण (41⁰49′) से बड़ा हो जाता है तो प्रकाश किरण नली के भीतर वायु में नही जाता बल्कि नली की दीवार से पूर्ण आंतरिक परावर्तित होकर आंख में प्रवेश करती है और परखनली चमकदार दिखाई देती है। यदि परखनली में जल भर दे तो परखनली का चमकना बंद हो जाता है। क्योंकि कांच जल के लिए क्रान्तिक कोण कांच वायु के क्रान्तिक कोण से बहुत बड़ा होता है। अतः प्रकाश का पूर्ण आन्तरिक परावर्तन नहीं पाता है।
इसी कारण खाली परखनली जल से भरे बीकर में तिरछा रखने पर चमकती है तथा जल से भरी परखनली जल से भरे बीकर में तिरछा रखने पर नही चमकती है।
ठंडे देशों में मरीचिका (Looming In Winter Areas)
अत्यधिक ठंडे क्षेत्रों में समुंद्र पर अथवा बर्फ के क्षेत्रों में दूर की वस्तुओं के प्रतिबिंब वायु में उल्टे लटके दिखाई देते हैं, इसका मुख्य कारण यह है कि जल तथा वायु से लगी परते ठंडी होकर सघन हो जाते हैं और ऊपर की परतें विरल होती जाती है।
![ठंडे देशों में मरीचिका](https://studyvigyan.com/wp-content/uploads/2023/09/1693632446706.jpg)
अतः समुद्र के जल पर तैरते जहाज से चली किरणे ऊपर की ओर जाती हुई, वायु की परतों पर अपवर्तित होकर अभिलंब से दूर हटती जाती है और एक समय ऐसा आता है कि किसी विशेष परत पर पूर्ण आंतरिक परावर्तन के पश्चात नीचे आने लगती है। जब यह किरणें व्यक्ति की आंख में पहुंचते हैं तो व्यक्ति को जहाज का प्रतिबिंब उल्टा वायु में लटका दिखाई पड़ता है। नीचे की परते चलने वाली नही होती अतः ये प्रतिबिम्ब स्थिर दिखाई पड़ता है।
अतः इस आर्टिकल में पूर्ण आन्तरिक परावर्तन और इसके उदाहरण को बेहतरीन ढंग से Photo, Video के माध्यम से समझाया गया है। इसके द्वारा आपके सभी Doubt समाप्त हो जायेंगे। यदि आपका कोई अन्य सवाल है तो Comment Box में लिखे।